आज का मशीनी जीवन
अब इस माहौल से अजनबीपन महसूस होने लगा है,
आज की मशीनी दौड़ में अपना आप खोने लगा है,
सुबह जल्दी-जल्दी उठकर काम पर जाना होता है,
वो वक्त नहीं मिलता जो अपनों संग बिताना होता है,
कामकाज में ऐसे उलझे कि जिंदगी जीना भूल गए
मार्च क्लोजिंग तो याद रही, सावन महीना भूल गए
छोटी छोटी बातों पर अब तो रिश्ते बिखरने लगे हैं,
हल्के से मज़ाक भी अब तो तंज जैसे दिखने लगे हैं,
एसी की ठंडी हवाओं से अब दम सा घुटने लगा है,
सब पा कर भी कुछ है जो शायद पीछे छूटने लगा है।
वो मस्ती, वो बचपना ना जाने कब-कहां खो गया है।
आज इन्सान इन्सान ना रह कर रोबोट सा हो गया है।
Dr. Arpita Agrawal
18-Jun-2022 08:57 AM
वाह, बहुत खूब 👌👌😊
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Swati Charan Pahari
19-Jun-2021 07:16 PM
वास्तविकता
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ऋषभ दिव्येन्द्र
19-Jun-2021 07:06 PM
वाह बन्धु वाह 👌👌👌👌 खूब लिखा आपने 👌👌👌👌
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